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होली न सिर्फ रंगों का त्योहार है बल्कि इसके साथ ऐतिहासिक तथ्य भी जुड़े हुए हैं : वर्मा

कादियां: रंगों का त्योहार माने जाने वाली पवित्र होली पर आज जहां पूरे देश में इस दिन को 1 दूसरे पर गुलाल फेंक कर मनाया जा रहा है । वहीं का दिया में होली के साथ साथ अन्य बच्चों ने 1 दूसरे पर गुलाल फेंककर भी होली का त्योहार मनाया गया ।
इस अवसर पर भारत विकास परिषद के अध्यक्ष मुकेश वर्मा ने होली के इतिहास पर रोशनी डालते हुए बताया कि
 : इस दिन असुर हरिण्याकश्यप की बहन होलिका दहन हुआ था। प्रहलाद बच गए थे। इसी की याद में होलिका दहन किया जाता है। यह होली का प्रथम दिन होता है। संभव: इसी कारण इसे होलिकात्वस कहा जाता है।
इसी तरह 1 अन्य कथा भी प्रचलित है कि इस दिन शिव ने कामदेव को भस्म करने के बाद जीवित किया था। यह भी कहते हैं कि इसी दिन राजा पृथु ने राज्य के बच्चों को बचाने के लिए राक्षसी ढुंढी को लकड़ी जलाकर आग से मार दिया था। इसीलिए होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं।
इसी तरह की 1 और उदाहरण भी सामने आती है कि
त्रैतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने धूलि वंदन किया था। इसकी याद में धुलेंडी मनाई जाती है। होलिका दहन के बाद ‘रंग उत्सव’ मनाने की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के काल से प्रारंभ हुई। तभी से इसका नाम फगवाह हो गया, क्योंकि यह फागुन माह में आती है। कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है। श्रीकृष्ण ने ही होली के त्योहार में रंग को जोड़ा था। मुकेश वर्मा ने बताया कि
 प्राचीन भारतीय मंदिरों की दीवारों पर होली उत्सव से संबंधित विभिन्न मूर्ति या चित्र अंकित पाए जाते हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है। अहमदनगर चित्रों और मेवाड़ के चित्रों में भी होली उत्सव का चित्रण मिलता है। ज्ञात रूप से यह त्योहार 600 ईसा पूर्व से मनाया जाता रहा है। होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है।
उन्होंने कहा कि यह त्योहार  न केवल रंगों का त्योहार है बल्कि इसके साथ कई ऐतिहासिक तथ्य जुड़े हुए हैं । इसीलिए हमें अपनी प्राचीन परम्पराओं को याद रखने हेतु इस दिन को धूमधाम से मनाना चाहिए ।
कैप्शन फोटो नंबर 1 में होली के पर्व पर एक दूसरे पर गुलाल फेंककर त्योहार मनाते हुए बच्चे
फोटो नंबर 2 में जानकारी देते हुए मुकेश वर्मा भारत विकास परिषद के अध्यक्ष
पहले होली के रंग टेसू या पलाश के फूलों से बनते थे और उन्हें गुलाल कहा जाता था। वो रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होता था। लेकिन समय के साथ रंगों में नए नए प्रयोग किए जाने लगे।
munira salam
munira salam
Editor-in-chief at Salam News Punjab
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