कादियां :(सलाम तारी) वित्त विभाग पंजाब द्वारा गत दिवस जारी किए गए पत्र में कर्मचारियों को मिलने वाले पे कमीशन में भारी अनियमितताओं के चलते जहां राज्य भर में विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं वहीं आज स्थानीय नगर कौंसिल मैदान में विभिन्न कर्मचारियों द्वारा नोटिफिकेशन की प्रतियां जलाकर सरकार के विरुद्ध रोष प्रदर्शन किया ।इस अवसर पर विशेष तौर पर मौजूद अध्यापकों द्वारा कहा गया कि पहली बार कांग्रेस सरकार द्वारा कोई पे कमीशन जारी किया गया है लेकिन उसको भी आंकड़ों में उलझाकर रख दिया गया है किसी भी कर्मचारी को अपने वेतन के बारे में कोई भी क्लैरिटी नहीं है। पिछले 5 वर्षो में 22 प्रतिशत के करीब पेंडिंग डी ए की किश्तों के बारे में कोई विवरण नहीं दिया गया है। 31-12-2015 तक की सैलरी को 2.25 से गुणा कर 1 जनवरी 2016 से पे कमीशन लागू करते हुए कर्मचारियों के अनेकों भत्तों में कटौती कर दी गई है और कुछेक भत्तों को तो पूर्ण रूप से ख़त्म ही कर दिया गया है। केन्द्र सरकार द्वारा लिए गए आंकड़ों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर पांचवें पे कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार यह कमिशन लगाया जा रहा है। इस सम्बन्ध में जानकारी देते हुए प्रिंसिपल अमरजीत सिंह भाटिया विपन कुमार, मोहित गुप्ता,मुकेश कुमार, जसपाल सिंह, पवन कुमार आदि ने बताया कि शिक्षा विभाग के पदों के वेतन में अक्टूबर 2011 में पहली किस्त (3000 से 4200, 3600 से 4600, आदि) में वृद्धि की गई थी। यह बढ़ोतरी सरकार की तरफ से तोहफा नहीं था लेकिन कई महीने पहले पिछले वेतन आयोग ने सरकार को अपनी गलती सुधारने की सिफारिश भेजी थी. हां, दिसंबर 2011 में कैबिनेट उप-समिति की ओर से बढ़ोतरी की गई थी।
वर्तमान छठा वेतन आयोग मानता है कि सितंबर की वेतन वृद्धि एक कर्मचारी का अधिकार है और उसने सिफारिश की है कि वेतन उसी आधार पर तय किया जाए। (उदाहरण: ईटीटी का प्रारंभिक वेतन 43000, मास्टर कैडर का प्रारंभिक वेतन 47600)। उन्होंने यह भी कहा कि दिसंबर 2011 में केवल 400 रुपये की वृद्धि अनुचित थी।
लेकिन वित्त विभाग के सक्षम अधिकारियों और मंत्रियों की चांडाल चौकड़ी ने बड़ी चतुराई से चंद शब्दों में लिखा कि सिर्फ 2011 की पूरी बढ़ोतरी ही वेतन तय करने में अक्षम है. ये चंद शब्द शिक्षा विभाग के लाखों कर्मचारियों के पैर कुल्हाड़ी मारने के लिए हैं उदाहरण: ईटीटी का मूल वेतन 43000 से घटाकर 29700 ही कर दिया गया है, मास्टर कैडर का मूल वेतन 47600 से घटाकर केवल 38100* कर दिया गया है, इसी तरह शिक्षा विभाग के अन्य शिक्षकों और अधिकारियों का वेतन है ) यह कोई मामूली नुकसान नहीं है। ध्यान दें कि इस निर्धारण का नुकसान सभी नए और पुराने कर्मचारियों के लिए 15% से अधिक है, 2016 के बाद स्थायी होने वालों के लिए 30% से अधिक है। कुछ सरकार समर्थक समूह अपने एसएसए सहयोगियों को बकाया राशि दिखाकर खुश कर रहे हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि हर महीने, पूरी सेवा में 30% की कमी होती है। बुजुर्गों के लिए तो पेंशनभोगी भी अभिशप्त हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि वित्त विभाग की सिफारिशों से शिक्षा विभाग पर सबसे ज्यादा असर पड़ने की संभावना है।
हमारे शिक्षकों ने वेतन आयोग द्वारा उन्हें दिया गया अधिकार भी खो दिया है और हमने अभी तक ऐसा नहीं किया है। साथियों को अब इसी मांग पर साथ आने की जरूरत है
*”वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करें”*
किसी को मुड़ने की जरूरत नहीं है,
लुधियाना की रैली को याद कीजिए, ऐसी 7 साल की स्टे पॉलिसी वाली रैली आज तक दोबारा नहीं देखी गई।
सरकार इकलौते शिक्षा विभाग का बेहतरीन प्रदर्शन दिखाकर चुनाव जीतने की तैयारी कर रही है.सबसे बड़ा धक्का उसी को लगने वाला है, और हम लाइक लाइक खेल कर खुश हो रहे हैं जो 4 लाख लाइक करते हैं, उन्हें 1 लाख का थोड़ा जनसमूह दिखा दें या िफर दूसरा विकल्प एक हजार दो हजार की बढ़ोतरी के साथ धैर्य रख लें। इस अवसर पर अन्यों के अतिरिक्त पवन कुमार, मुकेश कुमार, अमरजीत सिंह, मोहित गुप्ता, विपन कुमार, युनीश महाजन, अरविंदर जीत सिंह भाटिया , राज कुमार, दिनेश अबरोल, परमजीत सिंह ऊधनवाल सिकंदर सिंह बसरा सुभाष लडा, बलकार सिंह आदि उपस्थित थे।